संदेश न्यूज। कोटा.
बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए जिला प्रशासन व विभिन्न संगठन जहां तन, मन, धन से जुटे हैं, वहीं रामपुरा अस्पताल प्रशासन का इस मामले में अमानवीय बर्ताव सामने आया है। रामपुरा अस्पताल के जिन सरकारी आवासों में बाढ़ पीड़ितों को ठहराया गया था, उनके पुनर्वास की कोई वैकल्पिक व्यवस्था हो, उससे पहले ही अस्पताल प्रशासन उन्हें वहां से निकालने पर आमादा है। बाढ़ में अपना सबकुछ खो चुके 15 परिवारों ने रामपुरा अस्पताल के सरकारी आवासों में शरण ले रखी है। ये वे परिवार हैं, जिनके घर बाढ़ से क्षतिग्रस्त हो गए और उनमें बड़ी दरारें आ गई। प्रशासन ने उन पर क्रॉस का निशान लगाकर दोबारा वहां रहने से मना कर दिया। फतेहगढ़ी के इन परिवारों को पार्षद हेमा सक्सेना के प्रयास से रामपुरा में खाली पडेÞ मकानों में आश्रय दिलाया गया था, लेकिन अस्पताल के अधिकारी-कर्मचारी अब इन्हें परेशान कर रहे हैं। इनसे कह रहे हैं कि कहीं भी जाओ, लेकिन ये सरकारी मकान खाली करो।
20 सालों से बंद पडे थे ये मकान
रामपुरा अस्पताल परिसर में बने ये मकान करीब 20 साल से खाली पडेÞ थे। फतेहगढ़ी के लोगों ने यहां दो दिन तक साफ सफाई कर उन्हें रहने लायक बनाया। ये मकान न तो किसी को आवंटित हैं और न ही किसी के काम आ रहे हैं। यहां कबाड़ा भरा हुआ था। साफ-सफाई के बाद 8 मकानों में 15 परिवारों के करीब 60 लोगों को शिफ्ट किया गया। ये बाढ़ पीड़ित प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं कि जब तक हमारे मकान ठीक नहीं हो जाते, हमें यहां रहने दिया जाए। यहां से निकाला गया तो वे सड़क पर आ जाएंगे। कई बीमार व घायल भी यहां रह रहे हैं। पीड़ित ममता महावर ने बताया कि उसके सिर में गंभीर चोट है, बच्चे भी बीमार हैं। इस क्षेत्र में यदि कोई और स्थान है तो वह वहां भी जाने को तैयार हैं। इन परिवारों के बच्चे यहीं पास ही पढ़ाई करते हैं, इसलिए वह जिला प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें यहीं रहने दिया जाए।
जिला कलक्टर कोटा
ये प्रकरण मेरी जानकारी में आज ही आया है। मामले की जांच कराई जाएगी और कोई दोषी हुआ तो कार्रवाई होगी। – मुक्तानंद अग्रवाल, जिला कलक्टर कोटा