संदेश न्यूज। कोटा.
हम लोग संस्था के प्रयासों से इस बार दुर्गाष्टमी व नवमी को चम्बल व जल स्त्रोंतों में मिट्टी की बनी माता रानी की प्रतिमाओं का विसर्जन होगा। इस बार शहर में पीओपी की प्रतिमाओं को नहीं बनाया गया है। कोटा में करीब 500 प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाएगा, जो सभी मिट्टी की बनी हुई हैं जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा। आईएमए हॉल में पत्रकारों को जानकारी देते हुए संस्था के अध्यक्ष डॉ. सुधीर गुप्ता ने बताया कि अनंत चतुर्दशी पर आगामी वर्ष में ऐसा प्रयास पूर्व से ही शुरू किया जाएगा, जिसमें प्रशासन के सहयोग के साथ सामाजिक संस्थाओं से भी अपील की जाएगी कि वह पीओपी की बनी प्रतिमाओं को स्थापित नहीं करें।
मिट्टी की प्रतिमाओं की पूजा का विधान शास्त्रों में: कुंदन चीता व बीटा स्वामी ने बताया कि भारतीय संस्कति में या तो पत्थर की प्रतिमाओं की पूजा होती है या मिट्टी की प्रतिमाओं की, लेकिन जो लोग पीओपी की प्रतिमाएं बनवाकर चर्मण्यवती को प्रदूषित कर रहे हैं वह पर्यावरण के साथ संस्कृति से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। उन्होंने लोगों से अपील की है कि कोई भी अपने घर, मंदिर व सार्वजनिक स्थानों पर पीओपी की प्रतिमाओं का इस्तेमाल नहीं करें। मिट्टी की प्रतिमाओं के पूजन का विधान शास्त्रों में भी है। सीमा घोष ने बताया कि बंगाली समाज के लोग कभी भी पीओपी की प्रतिमाओं का इस्तेमाल नहीं करते हैं। इस अवसर पर पौधारोपण भी किया गया।
जलीय जंतुओं के साथ आमजन को खतरा
आईएमए के अध्यक्ष डॉ. एस सान्याल ने बताया कि सूर्य की किरणें पानी में सीधे पड़ने से कई फायदे होते हैं और मछली के साथ जलीय जंतुओं को लाभ होता है, आक्सीजन की मात्रा भी बढ़ती है। लेकिन पीओपी के कारण वह सतह पर जम जाती है और सूर्य की किरणें नीचे तक नहीं पहुंच पाती, जिस कारण जलीय जंतुओं को खतरा बना रहा है और वह मर तक जाते हैं। वहीं पानी में पीओपी नहीं घुलने से व केमीकल कलर का इस्तेमाल होने से डायरिया, संक्रमण, हेजा, उल्टी जैसी समस्याएं पैदा होती है। डॉ. गुप्ता ने बताया कि चम्बल को प्रदूषित होने से बचाने के लिए प्रत्येक उस पॉइंट पर कार्य किए जाने की आवश्यकता है, जिस कारण चम्बल मैली हो रही है। पॉलीथिन की रोकथाम, नालों को चम्बल में गिरने से रोकना व लगातार हो रहे अतिक्रमणों की रोकथाम करना अति आवश्यक है।