झांसी.
नवरात्र के दिनों में देवी के विभिन्न मंदिरों की महिमा और लोगों की उनसे जुड़ी असीम आस्था तो आम बात है लेकिन उत्तर प्रदेश के झांसी में पंडाल में स्थापित मां काली के प्रति लोगों की आस्था का स्तर इतना प्रबल होता है कि देशभर से लोग अपनी अपनी अरदास लेकर माता के चरणों में आते हैं और उनकी कृपा सभी श्रद्धालुओं को प्राप्त होती है। यहां कोतवाली थानाक्षेत्र अंतर्गत खटकियाना मोहल्ले में नवरात्रि के समय पिछले 31 साल से महाकाली की प्रतिमा की स्थापना की जाती है और यहां अपनी मुराद लेकर न केवल देश के अलग अलग हिस्सों से बल्कि अलग अलग संप्रदाय से जुड़े लोग आते हैं और मान्यता है कि कोई भी निराश होकर नहीं लौटता। नवरात्र के इन नौ दिनों में इस स्थान पर सर्वधर्म समभाव की वास्तविक अनुभूति होती है। देवी स्थापना समिति से जुडे बृजलाल खटीक ने मंगलवार को बताया कि हम पिछले 31 साल से मां की प्रतिमा की स्थापना यहां करते आ रहे हैं और झांसी के सभी लोगों के सहयोग से हर साल यह संभव हो पाता है। यह साल स्थापना का 32वां साल है और साल दर साल मां से जुड़ने वाले लोगों की संख्या में इजाफा ही होता जा रहा है। खटीक समाज के नंदराम, गेंदालालली धांड़ी, लक्ष्मीनारायण छत्रसाल, रक्कू रामजी, हरिबाबू जांगडे, बालो, हरि और डब्बू भइया जैसे लोगों को सबसे पहले इस क्षेत्र में देवी की स्थापना का विचार आया। इन लोगों के प्रयासों और सर्वसाधारण के सहयोग से नवरात्र में देवी स्थापना की परंपरा यहां शुरू हुई। समिति के संरक्षक मंडल में शामिल नंदराम ने बताया कि 31 साल पहले शुरू हुई परंपरा सबके सहयोग और देवी के आशीर्वाद से ही आज तक बादस्तूर जारी है। जब से देवी की प्रतिमा की स्थापना शुरू हुई तभी से नगरा क्षेत्र के मूर्तिकार मनोज ही प्रतिमा को बनाते आ रहे हैं। मां के दरबार से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं जाता और उनकी कृपा किसी जाति, समुदाय, पंथ या वर्ग के लिए नहीं है बल्कि जो भी सच्चे मन से यहां जो भी मनोकामना करता है उसको इच्छित फल प्राप्त होता है, इसी कारण देवी के प्रति लोगों की आस्था लगातार बढ़ती जा रही है। मुस्लिम समुदाय के लोग भी मां के दरबार में आते हैं, विशेष रूप से नि:संतान लोग जब इस स्थान पर आकर मां से आशीर्वाद की याचना करते हैं तो वह कभी खाली नहीं जाती। देवी की स्थापना के प्रारंभ से पूजा अर्चना करने वाले नारायण दास पुरोहित स्वंय इसके गवाह है उनको भी देवी की कृपा से कई वर्षों बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। सभी जगहों से निराश लोगों की आशा मां न केवल जगाती है बल्कि पूरा भी करती है। इसी कारण दूर दूर से लोग यहां आकर देवी के चरणों में नतमस्तक होते हैं। वर्तमान में पंडाल में देवी की पूजा अर्चना कर रहे पुरोहित आशुतोष पांडे ने बताया कि बचपन में इसी पंडाल में उन्होंने भी मां से कामना की थी कि कभी उन्हें भी अपनी सेवा का अवसर दें और आज करीबन पंद्रह साल बाद मां से मुझे अपनी सेवा का अवसर दिया। देवी के रौद्र रूप महाकाली की स्थापना यहां की जाती है जिनकी पूजा अर्चना बेहद कठिन है। यह देवी शाक्त परंपरा से जुड़ी हैं जिसमें सख्त रहना या होना बेहद अनिवार्य है इसलिए यहां वैसे नियमों का पालन करना पड़ता है जैसे फौजी करते हैं। ‘महाकाली’ काल या समय की अधिष्ठात्री देवी है वह समय की नियंत्रिका हैं इनकी पूजा आगम (तंत्र विधि) और निगम (वेद विधि) दोनों विधानों से होती है। मां के रौद्र रूप की पूजा तंत्रोक्त रूप से होती है। पूजा के दौरान बीज मंत्रों के उच्चारण में बेहद सावधानी आवश्यक होती है क्योंकि उच्चारण में हुई एक छोटी से गलती बहुत कुछ बिगाड़ भी सकती है। मंत्र प्रकृति से संबंधित हैं। वह शब्द ऊर्जा है, आपने जिस शब्द का उच्चारण किया वह प्रकृति में मौजूद ऊर्जा का चक्र चला देगी और फिर उसे रोक पाना किसी के बस में नहीं होगा। पुरोहित ने बताया कि सप्तमी का दिन महाकाली का होता है। सप्तमी की महाआरती में छोटे से स्थापना स्थल पर लगभग 30 हजार लोग आरती में शामिल होते हैं। रात 12 बजे होने वाली आरती में लोगों को प्रशाद बांटते बांटते सुबह के चार बज जाते हैं। उस दिन भर में पंडाल क्षेत्र में लगभग एक लाख श्रद्धालु मां के दर्शन करते हैं। लोगों ने बताया कि नवरात्र की शुरूआत में केवल एक ठेले पर ही देवी की प्रतिमा को लेकर पंडाल में स्थापित कर दिया जाता है लेकिन नौ दिनों तक विधि विधान से की गयी पूजा अर्चना और लोगों की आस्था के फलस्वरूप प्रतिमा इतनी भारी हो जाती है कि विसर्जन के दिन जब तक सैंकडों बकरों की बलि नहीं दी जाएं तब तक उठती ही नहीं। प्रतिमा इतनी भारी हो जाती है कि विसर्जन के लिए ले जाने के समय 100 से 150 लोग कंधा लगाते हैं तब भी सबके कंधे झुके रहते हैं सीधा होकर कोई नहीं चल पाता। विसर्जन के दिन देवी के नौ रूपों की प्रतिमाओं को भिन्न भिन्न पंडालों से उठाया जाता है लेकिन जब खटकियाने की महाकाली को एक बार उठा लिया जाता है तो फिर अन्य सभी देवियों की यात्रा बीच में ही रोककर सबसे पहले इनको विसर्जन स्थल पर पहुंचाया जाता है। इस प्रतिमा को वहां तक ले जाने के लिए कंधा देने वाले लोगों के चलने की गति इतनी तेज हो जाती है कि 12 से 13 किलोमीटर का रास्ता मां की सवारी केवल 15 से 20 मिनट में पूरा कर लेती है । एक बार देवी अपने स्थापना स्थल से उठने के बाद शहर में कहीं भी नहीं रूकती सीधे विसर्जन स्थल पर पहुंचती है। नौ दिनों तक चलने वाले आस्था के इस महाकुंभ में महाकाली से जुड़ी लोगों की आस्था इतनी बलवती होती है कि लोग बड़ी संख्या में इस स्थान की ओर आते हैं। देवी के दर्शनों के लिए रात में भी आने वाली महिलाओं और लड़कियों के साथ कभी कोई दुर्घटना नहीं होती। समिति के लोगों ने बताया कि इस जगह किसी माता बहन का कोई जेवर नहीं खोता, न ही हजारों की भीड़ होने पर किसी की जेब कटने की कोई घटना होती है। पूरे स्थल पर नौ दिन महाकाली की विशेष कृपा बनी रहती है।