संदेश न्यूज। कोटा. मनी-मनी के चक्कर में घनचक्कर हुई जिंदगानी, भागते-भागते धन के पीछे बुढ़ापा बनी जवानी। शायर की इन पक्तियों से साफ जाहिर होता है कि आदमी ताउम्र पैसों के पीछे ही भागता रहता है। लेकिन इस समय 10 का सिक्का ऐसा हो रहा हैजिसके पीछे लोग नहीं भाग रहे बल्कि 10 के सिक्के से लोग भाग रहे हैं। 10 का सिक्का कहीं काल कोठरी में धूल खा रहा है तो कहीं भ्रमजाल में फंसकर उसका अपमान किया जा रहा है। हाड़ौती में दस का सिक्का दुकानदार नही ले रहे। नोटबंदी का दौर बीते दो साल से अधिक का समय हो चुका लेकिन दस का सिक्का अभी भी असमंजस में फंसा हुआ है। जब बैंकों में सिक्के जमा कराने व्यापारी जाता है तो उससे लेने से इंकार कर दिया जाता है। कोटा में इन सिक्कों से बटटे का कारोबार किया जा रहा है। इन सिक्को को 5 प्रतिशत बट्टे पर दे देते हैं। 100 रूपए पर 95 रूपए ही मिलते हैं। दुकान के किसी भी आइटम पर 20 से 30 प्रतिशत मार्जन होता है। शहर में कईव्यापारी ऐसे हैं जो आज भी 10 रूपए का सिक्का ले रहे हैं और यहां से घंटाघर, रामपुरा, सब्जीमंडी व स्टेशन पर बट्टे में सिक्कों को दे देते हैं। बट्टे वाले 5 प्रतिशत कम में सिक्के लेते हैं और 5 प्रतिशत अधिक में राजस्थान से बाहर इन्हें भेज देते हैं और घर बैठे ही हजारों रूपए कमा रहे हैं। कोटा शहर में अनुमानित 1 हजार से अधिक भिखारी विभिन्न चौराहों, मंदिरों व सार्वजनिक स्थान व दुकानों पर भिक्षावृति के तहत पैसे जमा करते हैं, शाम तक एक भिखारी अनुमानित 50 से 100 रूपए तक के खुले पैसे जमा कर लेता हैऔर उन्हें चुनिंदा दुकान पर 10 से 20 प्रतिशत कम में दे देता है। अनुमानित 50 हजार रूपए की रेजगारी भिखारी के माध्यम से बट्टे वालों या व्यापारी तक पहुंच जाती है। यहां से या तो ये कोटा से बाहर चली जाती है या वापस दुकानों के माध्यम से चलन में आ जाती है। जिन लोगों के पास 10 रूपए के सिक्के होते हैं वह भिखारियों को दे देते हैं और भिखार भी उसे लेने से मना नहीं करते और बाद में उसे बट्टे में दे देते हैं। कोई दुकानदार या व्यक्ति आरबीआई द्वारा जारी सिक्कों नहीं लेता हैं, या लेने से इंकार करता हैं, तो उस पर राजद्रोह का मामला दर्ज कराया जा सकता हैं। भारत में वैध मुद्रा लेने से इनकार करने वालो पर आईपीसी की धारा 124 ए के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। मुद्रा या नोट लेने का वचन भारत सरकार की तरफ से दिया जाता है।