नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन विधेयक पर सोमवार को लोकसभा में हंगामा हो गया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयक तो सदन के पटल पर रख दिया, लेकिन विपक्षी दलों ने इसे पेश करने का विरोध कर दिया। उन्होंने इसे अल्पसंख्यक विरोधी करार दिया। इस पर शाह ने कहा कि यह बिल अल्पसंख्यकों के 0.001% भी खिलाफ नहीं है। हम हर सवालों के जवाब देंगे, लेकिन वॉकआउट मत करना। मुस्लिम समुदाय का इस विधेयक में एक बार भी जिक्र नहीं किया गया है। लेकिन विपक्षी सदस्य बिल पेश होने का ही विरोध करते रहे और लोकसभा में इस पर करीब एक घंटे बहस होती रही। कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी और एआईएमआईएम के असदउद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं ने अपनी बात रखी। इसके बाद स्पीकर ने बिल पेश होने पर वोटिंग कराने के निर्देश दिए। बिल पेश किए जाने के पक्ष में 293 और विरोध में 82 वोट पड़े। 375 सांसदों ने वोटिंग में हिस्सा लिया। विपक्ष धार्मिक आधार पर भेदभाव का आरोप लगाकर बिल का विरोध कर रहा है। उनकी मांग है कि नेपाल और श्रीलंका के मुस्लिमों को भी इसमें शामिल किया जाए। इस बिल को अल्पसंख्यकों के खिलाफ और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया जा रहा है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अगर बिल पेश हुआ तो गृह मंत्री अमित शाह का नाम इजराइल के पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरिओन के साथ लिखा जाएगा। इस दौरान भाजपा सांसदों ने ओवैसी के बयान पर आपत्ति जताई। शाह ने कहा कि यह बिल किसी भी तरह से अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है। अगर कांग्रेस धर्म के आधार पर देश का विभाजन नहीं करती तो नागरिकता बिल लाने की जरूरत ही नहीं होती। अगर समानता का कानून होगा तो अल्पसंख्यक के लिए विशेषाधिकार कैसे होंगे? उन्हें जो शिक्षा और अन्य चीजों का अधिकार मिला है, उसमें आर्टिकल 14 का उल्लंघन नहीं होता क्या? जितने अनुच्छेद के उल्लंघन की बात की गई, उन्हें ध्यान में रखकर ही बिल ड्राफ्ट हुआ है।