दिनेश कश्यप @ संदेश न्यूज कोटा.
बच्चों की मौत के मामले में एक बार फिर चर्चा में आए जेकेलोन अस्पताल पर बयानबाजी शुरू हो गई है। पक्ष-विपक्ष अपनी-अपनी बात कह रहे हैं। अस्पताल प्रशासन बच्चों की मौतों पर अपनी सफाई दे रहा है तो विपक्ष लापरवाही का आरोप लगा रहा है। ऐसे में चम्बल संदेश टीम द्वारा मामले की जड़ में जाने का प्रयास किया गया और कहां कमी है इसे लेकर बच्चों के परिजनों से बात की गई। जेकेलोन अस्पताल के असली दर्द की जड़ यहां की व्यवस्थाओं में नहीं बल्कि यहां काम करने वाले लोगों में मरीजों के प्रति असंवेदनशीलता है।
संसाधन हो सकता है खराब हो लेकिन यदि पूरी शिद्दत से प्रयास किए जाएं तो संभव है कि कुछ जानें बच जाएं। सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की जेकेलोन अस्पताल में परिजनों का दर्द हमेशा एक जैसा रहता है क्योंकि यहां के कर्मचारियों की प्रवृत्ति नहीं बदली। परिजनों का कहना है कि बच्चों की सांसें उखड़ रही होती है, परिजन गार्ड से लेकर, नर्स, कम्पाउण्डर, डाक्टर और अफसरों तक के हाथ जोड़ते रहते हैं, यहां-वहां धोक देते हुए रोते रहते हैं लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजता, कोई अपनी जगह से हिलने को तैयार नहीं होता। रात होते ही तो जैसे अस्पताल ही सो जाता है, फिर किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं।
परिजन इमरजेंसी हो या कहीं अन्य स्थान सभी जगह घूमते रहते हैं। राजनीतिक दल भी अस्पताल प्रशासन, बड़े अधिकारियों, डॉक्टरों पर कार्रवाई करने की बात तो कहते हैं लेकिन उस समय ड्यूटी पर मौजूद ऐसे कार्मिकों पर कार्रवाई नहीं होती जो मौजूद होने के बावजूद काम नहीं करते। मामला सुर्खियों में आने के बाद ही अस्पताल प्रशासन के कानों में जूं रेंगती है वह भी कुछ दिन के लिए।
पहले क्यों शुरू नहीं हुए पीकू-नीकू ?
जेके लोन अस्पताल में शुक्रवार को नवीन नीकू वार्ड शुरू किया गया जबकी ये पहले से ही तैयार था, बच्चों की मौत के बाद लेवल 3 में 12 बैड विद वार्मर के साथ सेवाएं शुरू की गई, जिन्हें पहले ही शुरू किया जाना चाहिए था। पूर्व में हुई बच्चों की मौत के बाद जेके लोन में इनडोर ब्लॉक व ओपीडी के नए भवन का कार्य चल रहा है। पूरे साल की बात की जाए तो अब तक 917 नवजात बच्चों की मौत होने की बात सामने आ रही है, बीते साल भी जब इस तरह का हंगामा हुआ था और 48 घंटे में 10 बच्चों की मौत हुई थी।
जीवनदायी उपकरण बंद मिलते हैं, कर दिए जाते हैं या बंद हो जाते हैं, पता नहीं
जेके लोन अस्पताल मौत के आंकड़े निरंतर लापरवाही से ही बढ़ते हैं। यहां हमेशा इक्यूपमेंट बंद मिलते हैं। फिलहाल 24 में से नौ वेंटिलेटर बंद, तीन डिफिब्रिलेटर में से एक खराब है, 114 इन्फ्यूजन पंप में 25 बंद हैं, 56 नेबुलाइजर में से 36 ही काम कर रहे हैं, 24 वेंटिलेटर में से 15 ही काम कर रहे हैं, अस्पताल में 71 वार्मर हैं, जिनमें से 60 ही काम कर रहे हैं, 13 सेक्शन मशीनों में से 11 काम कर रही हैं, तीन एबीजी मशीन में से एक ही मशीन ही काम कर रही है और दो खराब हैं, दो एक्सरे मशीन भी अस्पताल में बंद हैं, यहां पर 14 बीपी इंस्ट्रूमेंट खराब हैं और दो ऑक्सीजन कंसंट्रेटर खराब हैं, चार सिपेपे से पांच मशीनें बेकार पड़ी हैं।
दिसंबर के पहले 11 दिनों में ही 29 मौतें
जेके लोन अस्पताल में लगातार नवजात बच्चों की मौत के मामले सामने आ रहे हैं, साल 2014 से अब तक बात की जाए तो 7 हजार 540 नवजात बच्चों की मौत अस्पताल में हो चुकी है, जबकि अस्पताल प्रबंधन कहता है कि यह बच्चे रैफर होकर आए थे, साथ ही गंभीर स्थिति के चलते ही इनकी मौत हुई है, वहीं साल 2020 की बात की जाए तो 10 दिसंबर के एक दिन में 9 नवजात बच्चों की मौत का मामला सामने आया, वही दिसंबर महीने में अब तक 29 बच्चों की मौत हो चुकी है।
हमेशा दिखते हैं एक वॉर्मर पर दो नवजात
जेके लोन अस्पताल के नियो नेटल इंसेंटिव केयर में ज्यादा समस्या है, एनआईसीयू में अलग-अलग जगह पर 42 वॉर्मर लगे हुए हैं, लेकिन इन पर 65 से 100 तक बच्चे भर्ती रहते हैं, यानी की दो नवजात हमेशा एक वॉर्मर पर जेके लोन अस्पताल में देखे जा सकते हैं। वहीं जब ज्यादा संख्या में नवजात भर्ती हो जाते हैं, तो यह संख्या तीन तक पहुंच जाती है। ऐसे में नवजातों में एक दूसरे से संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है।
जवाबदेह के मोबाइल नम्बर क्यों नहीं हो सकते चस्पा ?
ड्यूटी के दौरान जवाबदेही तय नहीं है, ऐसे में चिकित्सकों व नर्सिंग स्टॉफ को कोई भय नहीं है। पहले तय हुआ था कि पोस्ट नेटल वार्ड में भी भर्ती नवजातों की लगातार शिशु रोग विभाग के डॉक्टर राउंड लेकर जांच करेंगे, लेकिन यह कुछ समय तो चला उसके बाद पूरी तरह से बंद हो गया है। कार्मिक सीट पर नहीं होते तो उन्हें अस्पतालभर में परिजन ढूंढते रहते हैं, उनके मोबाइल नम्बर सीट पर क्यों नहीं दिए जा सकते।
इलाज कम, कतारें ज्यादा
जेके लोन में इलाज कम कतारें अधिक हैं। नर्सिंग स्टाफ से लेकर हर व्यक्ति लापरवाही बरतता है, अस्पताल में जांच के लिए भी लंबा समय लग जाता है, चिकित्सक को दिखाने, दवा लेने, जांच कराने सहित कईजगह लम्बी कतारें रहती है।
रेजीडेंट व संविदा कर्मी के भरोसे
जेके लोन चिकित्सालय रेजिडेंट व संविदा कर्मचारियों के भरोसे चल रहा है। सीनियर चिकित्सक व स्टॉफ केवल खानापूर्ति करता है। अस्पताल में सबसे बड़ी समस्या ठेका श्रमिकों की है, यहां पर अनुबंध पर संवेदक के जरिए कार्मिकों को लगाया गया है, लेकिन नर्सिंग स्टाफ, स्वीपर से लेकर कंप्यूटर ऑपरेटर और सब कुछ अनुबंध पर है। इन्हें कोई डर नहीं रहता।
पर्याप्त स्टॉफ नहीं
जेके लोन अस्पताल में पर्याप्त स्टाफ नहीं है, यहां पर डाक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की कमी है, जिसके चलते काम का अधिक बोझ रहता है। सीनियर चिकित्सकों प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के 7 में से 5 पद खाली हैं, भर्ती मरीजों की संख्या भी अपेक्षा से अधिक है।
कर्मचारी पर कार्रवाई नहीं
जेके लोन अस्पताल में स्टॉफ पर कोई कार्रवाई नहीं होती जिससे दूसरों के हौसले भी बुलंद होते हैं, या यूं कहें की अस्पताल प्रशासन की मिलीभगत से सब फल फूल रहे हैं। अस्पताल के स्टाफ की लगातार शिकायतें आती हैं, यहां तक कि बदतमीजी भी स्टाफ अटेंडेंट के साथ करते हैं, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
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